गजलें और शायरी >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
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मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
तुम्हारे सजने-सँवरने के काम आयेंगे,
मेरे खयाल के जेवर सम्भाल कर रखना....
- संभाल कर रखना
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- जैसा उन्होंने कहा...
- कुछ अपने बारे में...
- आभार...
- जब धूप का समन्दर कुल आसमान पर है
- चाहे धरती या आसमान में हूँ,
- सागर था क्या हुआ उसे झीलों में बँट गया
- पनपता जिसके दिल में है उसी को चाट जाता है।
- मेरी ख़ामोशियों में भी, फ़साना ढूंढ़ लेती है
- सिर्फ़ बीनाई नहीं आँखों में पानी चाहिए
- इससे बढ़ के दुनिया में बेबसी नहीं होती
- हमको उसकी याद की गहराइयाँ अच्छी लगीं
- पर्वत के शिखरों से उतरी सजधज कर अलबेली धूप
- दिल के हाथों नज़र के चक्कर में
- सर पे ज़िम्मेदारियों का बोझ है, भारी भी है
- पड़े हैं जब भी क़लम के निशान काग़ज़ पर
- सब्र है तो निबाह कर लेगा
- क़दम जिस रास्ते पर आपके आगे बढ़े होंगे
- पत्थरों से सवाल करते हैं
- ग़मों की भीड़ में कोई ख़ुशी तलाश करें
- हदे-निगाह में दिखता कहीं ज़रूर न था
- शह दी है पियादे ने कोई बात नहीं है
- क्या मज़ा आता है जलने में, ये जलकर देखिये
- तुम्हारी ही नहीं है सिर्फ ये जागीर मौलाना
- जो याद आई तो आँखें भिगो गये रिश्ते
- जैसे भटकाये हिरन को रेगज़ारों का तिलिस्म
- हौसला है उमंग है भाई
- बुरा बनाये रहो या भला बनाये रहो
- अक्स से ख़ौफ़ खाने लगे आईने
- ख़ुलूस दिल में ज़बाँ में मिठास रहने दो
- हँसाने की ख़ातिर रुलायेंगे कबतक
- जैसे ख़ुश्बू गुल में सीने में धड़कता दिल रहा
- आज के जलते हुए माहौल के मंज़र न दो
- मयकदे में रही सुब्ह से शाम तक
- अजीब बात है सबको नसीब दुनिया है
- है सबके हाथ में पत्थर, संभाल कर रखना
- उसने इल्ज़ाम लगाया कि बाल आया क्यों
- चन्द दाने ढूंढने बस्ती से वीराने गये
- दर्द के मारे रहेंगे, दर्द के मारों के साथ
- ज़ख़्मों से होकर ताबिंदा, शाम से गाने लगता है
- अब शुरू इक नया सिलसिला कीजिए
- एक चेहरा सामने से यूँ गुज़रता है
- जिसकी आँखों में हया, और दिल में ख़ुद्दारी नहीं
- मुफ़लिस की जवानी के लिये सोचता है कौन
- ख़त की सूरत सही पैग़ाम तो उस तक पहुँचा
- मुझसे कोई हसीन शिकायत बनी रहे
- सच को झुठलाने की हिम्मत भी, कहाँ तक करते
- लुटा के ख़ुद को, वफ़ा लूट ले गया कोई
- माना हज़ार ग़म हैं, इक ज़िन्दगी के पीछे
- समझे न उनकी बात, इशारों के बावजूद
- बन्द रख, खोल मत ज़बाँ प्यारे
- दुनिया की तो हर आग से बचकर निकल गये
- अब रेत ही मिलनी है यहाँ ढूँढता है क्या
- ज़िन्दगी में ज़िन्दगी जैसा मिला कुछ भी नहीं
- किस कदर महफ़िल के पसमंज़र में तनहाई मिली
- सफ़र कठिन ही सही, तू जो हमक़दम हो जाय
- मेरी आँखों ने यूँ तो राह चलते कारवाँ देखे
- यूँ तो टूटी है बारहा उम्मीद
- कोशिशें कर लीं, न कर पाया मगर रुसवा मुझे
- बनती ही नहीं दिखती है बात किसी सूरत
- जब करो दिल से करो, जैसे इबादत की जाय
- मंज़िल न कोई राहगुज़र घूम रहे हैं
- आपको देकर सहारा हैं सहारे आपके
- बस अपनी सुनाना न सुनना किसी की
- ज़ुल्फ़, आँचल, अब्र, हम पर मेहरबाँ कोई न था
- वक़्त आया, कई मौसम मेरे आँगन लेकर
- हमारा चाँद उसको भा न जाये
- किसी के दर्द से मतलब, न घाव से मतलब
- जब से ख़ेमों में बँट गईं ग़ज़लें
- सब बिछाये हैं जाल राहों पर
- सिर्फ़ यादों का इक सिलसिला रह गया
- दे कोई क़ैद या रिहाई दे
- दर-दर प्यासा फिरा अगर ख़य्याम ज़माने में
- उसको पाने के लिये ख़ुद को मिटाना होगा
- उससे यारी है उससे अनबन भी
- सदा वापस पलट कर आ रही है
- ये जुर्म है तो हमें है क़ुबूल तोड़ दिये
- अकेला जंग में था ख़ुद को लश्कर कर लिया मैंने
- खोले न ज़ुबाँ लाख मगर बोल उठेगा
- हो ज़ियादा चाहने वाला या कम कोई तो है
- गर मेरी ग़ज़लें न भूखों को निवाला दे सकें
- बिना लफ़्ज़ों का कोई ख़त पढ़ा क्या
- दिल को क्या सूझी है क्या गुल ये खिलाना चाहे
- किसी को भी ये बीमारी न देना
- जब वो अपने से हार जायेगा
- अक्स लफ़्ज़ों के हैं, गुफ़्तार का आईना है
- इतना मेरे बाद न करना
- अगर पी है तो पीकर लड़खड़ाना क्या ज़रूरी है
- दर्द के हरसिंगार ज़िन्दा रख
- तलफ़्फ़ुज़ों की जिरह और बयान के झगड़े
- बहुत अच्छा बहाना है
- चलो माना कि मेरा नाम कम पहचाना जाता है
- अगर न तंग हो अपनी नज़र दिखाई दे
- हमें कब हसरतों की क़ैद से आज़ाद करती है
- बारिशों में अकाल जैसी है
- चाँद का चेहरा चूम के चमका एक सितारा शाम ढले
- आदमी को आदमी से डर भला क्योंकर लगा
- कोई शोहरत न दौलत चाहता है
- मंज़िल पे पहुँचने का इरादा नहीं बदला
- तस्लीम कि दुनिया को बदलने नहीं आये
- दर्द आधा तो कर ही सकते हैं
- वो औरों की परेशानी से ख़ुश दिखलाई देता है
- सब के सब हो गये सयाने अब
- फिर किसी की झील सी आँखों को खारा कर गया
- जान बाक़ी है अभी जिस्म पे सर बाक़ी है
- कभी-कभी
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संभाल कर रखना
जैसा उन्होंने कहा...
पं. कृष्णानन्द चौबे
ऐसे रचनाकारों की संख्या बहुत कम होगी जिन्हें शुरू से ही शोहरत की कोई लालसा नहीं रही हो, न मंचों के माध्यम से और न प्रकाशनों के। लेकिन आम तौर से ऐसे लगनशील रचनाकारों के साथ होता यह है कि शोहरत स्वयं इनके पीछे-पीछे चलने लगती है। ऐसे ही रचनाकारों में शुमार किये जाते हैं राजेन्द्र तिवारी।
ग़ज़लों के इस सशक्त हस्ताक्षर ने ग़ज़ल प्रेमियों के दिलों में अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया है। शोहरत के लिये वह ग़ज़लों को लेकर किसी अवांछित विवाद में कभी नहीं पड़े, चाहे भाषा का हो या व्याकरण का। फिक्र और फ़न के सम्यक सामंजस्य के कारण उनकी ग़ज़लें अपनी एक अलग छाप छोड़ती हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि पाठकगण संग्रह का भरपूर स्वागत करेंगे। मेरी शुभकामनायें एवं आशीर्वाद सदैव उनके साथ हैं।
अंसार क़ंबरी
चेहरे पर मुस्लिम सभ्यता को दर्शाती दाढ़ी, नहीफ़ आवाज़, आकर्षक लहजा, लहजे में ग़ज़ब का आत्मविश्वास लिये भाई राजेन्द्र तिवारी मुझसे पहली बार यह कहते हुए मिले-
आज जो कुछ हैं सो हैं, कल नम्बरी हो जायेंगे।
लिखते-लिखते हम भी इक दिन क़ंबरी हो जायेंगे।
आज मुझे बहुत हर्ष हो रहा है कि उनकी ग़ज़लों का गुलदस्ता ‘संभाल कर रखना’ आपके हाथों में है।
यह संकलन इस बात का प्रमाण है कि राजेन्द्र तिवारी, क़ंबरी नहीं बल्कि उससे भी आगे हैं।
उनके इस स्तरीय संग्रह के लिये बहुत-बहुत बधाई! ईश्वर से उनकी दीर्घायु एवं प्रगति की कामना के साथ।
आर. पी. शर्मा ‘महर्षि’
राजेन्द्र तिवारी निस्संदेह एक परिपक्व, अनुभवी एवं कुशल ग़ज़लगो शायर हैं। उनके ग़ज़ल संग्रह ‘‘संभाल कर रखना’’ में सम्मिलित उनकी प्रभावी ग़ज़लें इस तथ्य का अकाट्य प्रमाण हैं। उनकी काव्य रसिकता उत्कृष्ट कोटि की है, उन्हें शे’र कहने का फ़न आता है। उनकी ग़ज़लें सहज भाव से सृजित, सरस और सुरुचिपूर्ण हैं। इसमें उनकी निजी शैली एवं प्रभावी प्रस्तुतीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जो उनकी अलग पहचान बनाती है। उनके शे’रों में नवीनता है, ताज़गी है। उनमें कोई न कोई अनकही एवं अनछुई बात कही गई है। उनकी ग़ज़लों में सम्पूर्ण जीवन-जगत आबाद है।
‘‘संभाल कर रखना’’ जो उनकी 32वीं ग़ज़ल की रदीफ़ है, इस ग़ज़ल संग्रह के शीर्षक को पूर्णतया चरितार्थ करती है। तिवारी जी की ऊर्जावान लेखनी आगे भी ऐसी ही गुलफ़िशानी करती रहेगी ऐसा अपेक्षित है। हार्दिक अभिनंदन सहित.....
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